राजनीति का प्रतिशोध काल

भारतवर्ष इस समय राजनीति में भयंकर संक्रमण के दौर से गुजर रहा है। वैचारिक, जनसरोकारों से जुड़ी, सामजिक उत्थान को केंद्रबिंदु बनाकर चलने वाली तथा विकासवादी राजनीति का पतन होते देखा जा रहा है। इसका स्थान सांप्रदायिकतावादी, जातिवादी, क्षेत्रवादी, सत्ता पर काबिज होने की प्रवृति रखने वाली तथा वैचारिक मतभेदों के बजाए निजी मनभेदों को परवान चढ़ाने वाली राजनीति ने ले लिया है। नेता से लेकर अधिकारियों तक से चुन-चुन कर बदले लिए जाने जैसा घृणित व निजी द्वेष दर्शाने वाला माहौल देखा जा रहा है। खासतौर पर गत् कुछ वर्षों में राजनीति में ऐसी प्रवृति ने तेजी से जोर पकड़ा है जहां किसी सत्ताधारी राजनेता से वैचारिक मतभेद रखने वाले या किसी राजनेता की पोल खोलने वाले तथा उसे आईना दिखाने वाले अधिकारी की किसी अन्य बहाने से या तो छुट्टी कर दी गई या उसे जेल भेज दिया गयाया फिर ऐसे किसी काबिल अधिकारी को बर्खास्त कर देना अथवा उसका किसी ऐसी जगह स्थानांतरण कर देना जहां उसे उसकी योग्यता व क्षमता के अनुरूप कार्य करने का अवसर न दिया जाए, यह आम बात हो गई है। कभी-कभी तो ऐसा महसूस होता है कि ऐसी संकुचित मानसिकता रखने वाले नेता वास्तव में देश व जनहित की राजनीति कर रहे हैं या फिर अपनी सत्ता हासिल करने की स्वार्थसिद्धि की खातिर निजी द्वेष या दुश्मनी निभाने के स्तर तक उतर आए हैं? ताजातरीन घटना पंजाब के होशियारपुर निवासी एवं उत्तर प्रदेश कैडर के 1992 बैच के आईपीएस अधिकारी जसवीर सिंह से जुड़ी हैउन्हें गत दिनों उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने केवल इस आरोप में बर्खास्त कर दिया क्योंकि उन्होंने कथित रूप से किसी निजी वेबसाईट को एक साक्षात्कार दिया था। जसवीर सिंह पर आरोप है कि उन्होंने अपने साक्षात्कार में कथित रूप से कुछ ऐसी बातें कहीं जो एक पुलिस अधिकारी होते हुए उन्हें नियमानुसार नहीं करनी चाहिए थीं। हालांकि उनसे इस संबंध में स्पष्टीकरण भी मांगा गया था। परंतु स्पष्टीकरण का जवाब न देने पर योगी सरकार द्वारा उन्हें उनके पद से निलंबित कर दिया गया। जसवीर सिंह अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (एडीजी) रूल्स एंड मैनुअल शाखा में तैनात थे। अब जरा जसवीर सिंह की सेवाकाल के पिछले पन्नों को पलटकर भी देखिए। यह वही जसवीर सिंह हैं जिन्होंने 2009 में वर्तमान मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश आदित्यनाथ योगी के विरुद्ध दंगे करवाने के आरोप में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) के तहत कार्रवाई की थी। इतना ही नहीं बल्कि इसी निडर अधिकारी ने 1997 में सबसे पहले उत्तर प्रदेश के कुंडा के विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया पर उस समय शिकंजा कसा था जबकि वे प्रतापगढ़ में बतौर पुलिस अधीक्षक तैनात थे। हालांकि इन दोनों ही नेताओं पर हाथ डालने का परिणाम स्थानांतरण के रूप में जसवीर सिंह को तत्काल ही भुगतना पड़ा था। यह राष्ट्रभक्त एवं कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी यह मानता है कि राष्ट्र तथा राष्ट्रीय कार्य सर्वोपरि हैं। इसके लिए अधिकारियों को किसी भी प्रकार का बलिदान देने के लिए तत्पर रहना चाहिए। जसवीर सिंह के उपरोक्त कारनामों को जानने के बाद क्या ऐसा समझा जा सकता है कि इतने जिम्मेदार व कर्तव्यनिष्ठ तथा ईमानदार अधिकारी को केवल इसलिए निलंबित कर दिया गया होगा कि उसने किसी वेबसाईट में अपने विचार क्यों व्यक्त किए? इन्हीं परिस्थितियों से देश के अनेक आलाअधिकारियों को जूझना पड़ रहा है। हम कह सकते हैं कि राजनीति के इस संक्रमण काल में ज्ञानवान तथा सूझ-बूझ रखने वाले कर्तव्यनिष्ठ अधिकारियों की नहीं बल्कि चाटुकार किस्म के जी हुजूरी करने वाले खुशामदपरस्त वफादारों की जरूरत हैकिसी अधिकारी की योग्यता का पैमाना उसकी काबिलियत नहीं बल्कि उसकी वफादारी व खुशामदपरस्ती बन चुकी है। गुजरात में संजीव भट्ट नामक एक ऐसा ही पुलिस अधिकारी इसी प्रकार के राजनैतिक विद्वेष की सजा भुगत रहा हैइस प्रकार के अधिकारियों की सूची बहुत लंबी है। नौकरशाही के लोगों से बदला लेने या उनपर किसी न किसी बहाने शासकों की गाज गिरने की कहानी तो इस देश में पुरानी हो चुकी है। वर्तमान दौर में तो राजनेता भी अपने प्रतिद्वंद्वी राजनेता से सीधे तौर पर बदला लेते दिखाई दे रहे हैं। साफ नजर आ रहा है कि जैसे एक नेता दूसरे को यह संदेश दे रहा हो कि कल जब तु हारे पास सत्ता थी तो तुमने यह कर दिखाया, आज मेरे पास सत्ता है तो मैं भी वही काम कर सकता हूं। लखनऊ में पिछले दिनों ऐसी ही एक घटना उस समय घटी जबकि उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को लखनऊ स्थित हवाई अड्डे पर उस समय भारी पुलिस बल द्वारा रोक दिया गया जबकि वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में भाग लेने हेतु इलाहाबाद के लिए उड़ान भरने वाले थेप्रशासन द्वारा इलाहाबाद में कानून व्यवस्था बनाए रखने के नाम पर अखिलेश यादव को इलाहाबाद की उड़ान भरने से रोका। अब जरा इस घटना की पृष्ठभूमि में भी झांककर देखिए। इलाहाबाद छात्रसंघ समारोह में 20 नवम्बर 2015 को तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ को शरीक होना था। उस समय अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। जिस समय योगी, छात्रसंघ के निमंत्रण पर इलाहाबाद जा रहे थे उस समय उनके काफिले को इलाहाबाद में प्रवेश करने से उत्तर प्रदेश पुलिस ने रोक दिया था। उस समय योगी आदित्यनाथ पर कई आपाराधिक मुकद्दमे चल रहे थे। वे एक फायरब्रांड नेता के रूप में भी अपनी पहचान रखते थे। अखिलेश सरकार ने इन्हीं बातों के मद्देनजर तथा इलाहाबाद में कानून व्यवस्था बनाए रखने की गरज से योगी आदित्यनाथ को इलाहाबाद में प्रवेश करने से रोक दिया था। परंतु पिछले दिनों अखिलेश यादव को इलाहाबाद न जाने देने का कारण भी सरकार द्वारा हुबहू वही बताया गया जो 2015 में अखिलेश सरकार द्वारा बताया गया थाइस परे घटनाक्रम के पीछे के सच व झूठ का निर्णय तो जनता ही कर सकती है। वैसे भी इस समय यदि आप राष्ट्रीय स्तर पर भ्रष्टाचार के आरोप में अथवा आय से अधिक संपत्ति रखने जैसे इल्जामों में संलिप्त पाए जाने वाले नेताओं के नाम देखें या सीबीआई अथवा प्रवर्तन निदेशालय के निशाने पर आने वाले लोगों की सूची देखें तो आपको इस बात का सा+फतौर पर अंदाजा हो जाएगा कि भ्रष्टाचार केवल सत्ता का विरोध करने वालों की ओर ही दिखाई दे रहा है और सत्ता पक्ष पूरी तरह से दूध का धुला है। पिछले दिनों शारदा चिटफंड घोटाले को लेकर कोलकाता में सीबीआई व ममता बनर्जी के मध्य चली रस्साकशी में भी अनेक विश्लेषक व समीक्षक यह पूछते रहे कि शारदा घोटाले का सबसे पहला व बड़ा आरोपी सांसद मुकुल रॉय क्या केवल इसलिए शारदा घोटाले का आरोपी नहीं रहा क्योंकि उसने भारतीय जनता पार्टी जैसी पवित्र गंगा में डुबकी लगा ली? और ममता बनर्जी व उनके अन्य सहयोगी केवल इसलिए जिम्मेदार हैं क्योंकि वे पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी की प्रत्येक साजिश का मुंहतोड़ जवाब दे रहे हैं? दरअसल राजनीति में विद्वेषपूर्ण तथा निजी स्तर पर दुर्भावना रखने वालों के तेजी से बढ़ते प्रवेश ने राजनीति के चेहरे को कुरूपित कर दिया है। यही वजह है कि देश में वैचारिक राजनीति का पतन हो चुका है। अवसरवादी राजनीति तेजी से परवान चढ़ रही है। कोई भी व्यक्ति किसी भी समय बिना किसी वैचारिक दृष्टिकोण के केवल पार्टी का टिकट अथवा मंत्री बनने की चाहत में अपनी सुविधा अनुसार किसी भी दल में बेरोक-टोक जा सकता है। राजनीति का प्रतिशोध काल भी इसी संक्रमणकारी राजनीति का हिस्सा है।